**** कुंभ मेला –
दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है। करोड़ों श्रद्धालुओं को एक साथ लाने वाला महोत्सव है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका इतिहास हजारों साल पुराना है ।
****महाकुंभ प्रयागराज 2025 अमृत स्नान की कुछ महत्वपूर्ण तिथियां –
**महाकुंभ का दर्शन देश के विभिन्न स्थानों पर होता है ।
****प्रयागराज –
उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है । यहां पर तीन नदियों का संगम होता है, गंगा यमुना और सरस्वती इसीलिए इसे त्रिवेणी भी कहा जाता है । हर एक 12 साल के बाद यहां पर कुंभ मेला लगता है जो दुनिया भर में सनातन धर्म को स्थापित करता है ।
****कुछ स्थान से प्रयागराज की दूरी
मोतिहारी से प्रयागराज की दूरी – 438 KM
मुजफ्फरपुर से प्रयागराज की दूरी – 448 KM
पटना से प्रयागराज की दूरी – 370 KM
अयोध्या से प्रयागराज की दूरी – 164 KM
बनारस से प्रयागराज की दूरी – 122 KM
कानपुर से प्रयागराज की दूरी – 209 KM
गोरखपुर से प्रयागराज की दूरी – 294 KM
लखनऊ से प्रयागराज की दूरी – 197 KM
Picture Google Map के द्वारा
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***कुंभ मेले की उत्पत्ति –
कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है, और इसके पीछे छिपे कई अनसुने तथ्य आज भी इसे रहस्यमयी बनाते हैं।
****कुंभ मेले से जुड़े रोचक तथ्य और इसके सांस्कृतिक प्रभाव ।
चलते हैं कुछ पुरानी कथाओं के अनुसार जब असुरों और देवताओं के बीच अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन हुआ था , तो इसमें से एक अमृत कलश निकला था अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और राक्षसों में युद्ध छिड़ गया तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके इसे लेकर आकाश मार्ग में विचरण करने लगे इस दौरान अमृत की बूंदे चार स्थानों पर गिरी — हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नाशिक इस चारो स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन होता है , ऐसा माना जाता है कि अमृत की बूंदें गिरने से यहां के जल में दिव्य शक्ति आ गई और यहां पर स्नान करने से स्थान पवित्र हो गया और यहां पर कुंभ के दौरान जो भी आदमी स्नान करता है उसे मोक्क्ष की प्राप्ति होती है ।
***कुंभ शब्द का अर्थ –
कुंभ शब्द का संस्कृत में अर्थ घडा, कलश या पात्र होता है या अमृत से भरा हुआ पात्र होता है।
***कुंभ का उद्गम स्थल –
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी प्रयागराज के मेले के बारे में उल्लेख मिलता है । हरिद्वार कुंभ मेले का प्रारंभिक केंद्र माना जाता है, कि हरिद्वार का ही कुंभ मेला सबसे प्रारंभिक कुंभ मेला है , क्योंकि इसका आयोजन कुंभ राशि के ज्योतिषीय चक्र के आधार पर किया जाता है और हरिद्वार का 12 वर्षीय कुंभ मेला का प्रारंभिक चक्र प्राचीन ग्रंथो में बार-बार उल्लेखित है ।
*** प्राचीन काल में कुंभ का आयोजन –
इस मेले की तरह ही प्राचीन काल में नाशिक और उज्जैन में मेले का आयोजन किया जाने लगा जिसे सिंघस्त मेला भी कहा जाता है , इस तरह के मेलों का श्रेय आठवीं शताब्दी में संत शंकराचार्य को दिया जाता है ।
*** मकर मेला माघ मेला –
गुरु शंकराचार्य ने इसी तरह सनातन धर्म के साधुओं के लिए मठ और मंदिरों का निर्माण कराया और छोटे सभाओं का आयोजन किया ,इन्हीं के आधार पर मकर मेला, माघ मेला और महत्वपूर्ण स्थान पर स्नान की परंपरा चालू हुआ । तमिलनाडु में कावेरी नदी के तट पर माघ मेला हर एक 12 वर्ष पर आयोजित किया जाता है, जिसे तमिल कुंभ मेला भी कहा जाता है। इसी प्रकार नेपाल पानीपत में भी माघ मेला या मकर मेला का आयोजन किया जाता है ।
****कुंभ मेला में श्रद्धालुओं की संख्या –
प्रत्येक कुंभ मेला में बहुत भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं , इसमें सबसे बड़ा आयोजन प्रयागराज में होता है ,और उसके बाद हरिद्वार कुंभ मेला का स्थान आता है , रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 20 करोड़ हिंदुओं ने कुंभ मेला में भाग लिया था , इसमें सबसे बड़ी भीड़ 4 फरवरी को 5 करोड लोगों ने संगम वाले स्थान पर स्नान किया था, इसे सबसे बड़े शांतिपूर्ण सभावो में से एक माना जाता है , और इसे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन कहा जाता है।
*** अखाड़े और योद्धा सन्यासी –
वर्तमान में केवल 13 अखाड़े हैं, जिसमें 10 हिंदू परंपरा से जुड़े हुए हैं ,और 3 सिख परंपरा से प्रत्येक अखाड़े का अपना ध्वज , चीह्न और आचार संहिता होती है , प्रत्येक अखाड़े का साधु सबसे पहले संगम में शाही स्नान करते हैं ,शाही स्नान अखाड़े में प्रतिष्ठा का प्रमाण माना गया है ।
***नागा साधु और अखाड़े –
अखाड़े की जड़े हिंदू नागा साधुओं की परंपरा में मिलती है, नागा साधु निर्वस्त्र योद्धा सन्यासी थे ,जो युद्ध में बिना कपड़ों के जाते थे , जो धार्मिक संरक्षण और आध्यात्मिक मूल्यों के लिए युद्ध में जाते थे , ये नागा संन्यासी संगम मेले में शाही स्नान के दौरान विशेष रूप से एकत्रित होते हैं, जो अखाड़े की शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रदर्शन है ,17 वीं शताब्दी में अखाड़े के बीच वर्चस्व की लड़ाई शाही स्नान के दौरान एक प्रमुख समस्या बन गई थी , हर अखाड़ा चाहता था, उसे सबसे पहले और शुभ समय मिले ईस्ट इंडिया कंपनी में ऐसा कई दस्तावेज मौजूद है जिसमें अखाडो के बीच खूनी लड़ाइयां लड़ी गई है, जिसमें कई साधुओं की जान चली गई
1760 के हरिद्वार कुंभ मेले में शैव और वैष्णव साधुओं के बीच झड़प हुई जिसमें सैकड़ो साधुओं को अपना जान गवना पड़ा , 1789 में इस प्रकार का ही अखाडो के बीच लड़ाई हुई जिसमें 12000 साधुओं की मृत्यु का सूचना एक पेशवा के दस्तावेज में लिखित है , यह विवाद स्नान के समय को लेकर हुआ था जो अखाड़े का वर्चस्व को दर्शाता था ।
***धर्म और अखाड़े –
हिंदू धर्म के मान्यताओं के अनुसार शैव, वैष्णव, और उदासीन पंथ के संन्यासियों के कुल 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं , जिसमें से 7 अखाड़ों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी , कुंभ या अर्धकुंभ में इन सभी अखाड़ों के साधु-संत भाग लेते हैं , इन अखाड़ों की प्राचीन काल से ही स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है ।
अखाड़ों में साधु-संत आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र विद्या से भी परिपूर्ण होते हैं ।
देश आजाद होने के बाद अखाड़ों ने अपने सैन्य चरित्र को त्यागा और भारतीय संस्कृति तथा सनातनी दर्शन के मूल्यों को आगे बढ़ाने और धर्म की रक्षा के लिए काम करने लगे ।
*** 13 अखाड़े इस प्रकार है –
1. जूना अखाड़ा
2. निरंजनी अखाड़ा
3. महानिर्वाण अखाड़ा
4.अटल अखाड़ा
5. आह्वान अखाड़ा
6.आनंद अखाड़ा
7.पंचाग्नि अखाड़ा
8. नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा
9. वैष्णव अखाड़ा
10. उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा
11. उदासीन नया अखाड़ा
12. निर्मल पंचायती अखाड़ा
13. निर्मोही अखाड़ा
इन सभी अखाड़े के साधु ,संत, महात्मा आते हैं , और शाही स्नान का आगमन करते हैं , ये सभी हिंदू धर्म के धरोहर हैं।
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